सर्वप्रथम कोई मृत्यु असमय नहीं होती केवल आत्महत्या को छोड़कर। आत्मा का भटकना उसकी इच्छाओं पर निर्भर है। यदि आत्मा मृत्यु को स्वीकार नहीं करती, ऐसे में वह भटकती है। ऐसी आत्मओं का हश्र भी बहुत बुरा होता है। कभी किसी दुष्ट तांत्रिक की ग़ुलाम बन जाती है, कभी दुसरे शक्तिशाली प्रेतों की ग़ुलाम। ऐसे में बुरे कर्म इनसे करवाये जाते है, और ऐसी आत्माएं फिर मुक्ति के मार्ग पर लौट कर नहीं आ सकती। हाँ, यदि कोई अच्छा साधक इनकी मुक्ति करवाएं, तो अवश्य ही अनेक योनि में जन्म ले यह वापस जन्म मरण के बंधन से कर्मों द्वारा मुक्ति पाने के लिए स्वछंद हो जाती है। इसलिए कहा जाता है जीते जी अपनी इच्छाओं का त्याग कर दो, ताकि यह आत्मा मृत्यु को स्वीकार सके। अन्यथा मृत्यु समय से हो या असमय से, आत्मा भटकेगी जरूर, और उपरोक्त संकट उसके मार्ग में आएंगे।

मुझे लगता है कि अकाल या काल मृत्यु से मुक्ति का सम्बन्ध नहीं है । मुक्ति का सम्बन्ध कर्मों से है । मृत्यु के बाद कौन सी आत्मा भटकती है और कौनसी को तुरन्त नया शरीर मिलता है ,यह कोई नहीं जानता और न ही जान सकता है । यह ईश्वरीय व्यवस्था है । कुछ समय के लिए यह मान भी लिया जाए कि अकाल मृत्यु के बाद आत्मा भटकती है, तो किसी भी तान्त्रिक , ज्योतिषी , गुरु में इतनी क्षमता नहीं है कि वह उसकी मुक्ति करा सके । क्योंकि आत्मा की गति , उसके द्वारा किए गए अपने कर्मों से ही सम्भव है । जो करता है वही भोगता है । यही ईश्वरीय न्याय है ।

गरुण पुराण में अकाल मृत्यु के कई प्रकार बताए गए हैं। जैसे जब कोई व्यक्ति भूख से तड़प कर मर जाता है, तो ऐसी मृत्यु को अकाल मृत्यु कहा जाता है| किसी हिंसक जानवर द्वारा उसकी हत्या हो जाती है, या फिर किसी जहरीले पदार्थ के सेवन करने से व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, या पानी में डूब कर उसकी मौत हो जाती है, तो ऐसे मृत्यु को भी अकाल मृत्यु कहा जाता है।

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