प्रिय मित्र सभी प्राणियों में एक समान जीव रहता है आत्मा नहीं। जैसे धातु से भिन्न-भिन्न प्रकार की गाडिय़ां बनाई जाती है कार मोटरसाइकिल ट्रक रेल जहाज किस्ती आदी। पर चलाने वाला ड्राइवर जीव ही होता है। इसका मतलब यह नहीं की जीव गाड़ी बन जाता है। क्योंकि ड्राइवर हर प्रकार की गाड़ी चलाना जानता है। इसलिए यह भ्रम तो दिमाग से निकाल दे की जीवात्मा अलग अलग होती है।
ये गाड़ी अर्थात मन व शरीर अलग अलग होते हैं। इसलिये विचार अलग बन जाते हैं ओर कर्म भी। जीवात्मा मन को चला रही है। मन व शरीर एक ही सिक्का है। अर्थात निराकार व साकार एक ही होता है। जो एक होता ऊसको जाने। ओर जो अलग अलग होता है उसको जाने। आपके सारे भ्रम स्वतः दुर हो जाएगें। बिना भ्रम दुर हुए आप भ्रमित रहेगें।
शरीर जीव का कभी भी मरे कोई फर्क नहीं पड़ता है। अरे भाई यह जीव की गाड़ी है कभी भी खराब नष्ट हो सकती है। इसमे अचम्भा कैसा। अगर एक गाड़ी नष्ट हो गई तो दुसरी चला लेगा इच्छा अनुसार। क्योंकि जीव शरीर मरते समय शरीर की सहायता से अपना लक्ष्य बना चुका होता है जाना कहाँ है। जीव सुरति लगा चुका होता है शब्द स्पर्श रुप रस गन्ध में से किसी पर।
उसी अनुसार उसको नया शरीर मिल जाता है। कोई इन्तज़ार नहीं करना पड़ता उसे। जीव शरीर तो धारण करेगा. ही करेगा। इसलिए अन्य प्राणियों का कोई क्रिया कर्म नहीं होता। जाना कहाँ है ये क्रिया कर्म तो शरीर जिवित रहते चलता रहता है। मरने के बाद कुछ नहीं होता। आपके कर्म ही तो आपका नया शरीर का निर्धारण करते हैं।
ये तो केवल मनुष्य भारी अज्ञानता में पाखडं कर रहा है। सापं के जाने के बाद लकीर पिटता है। क्या लकीर पिटने सापं मर जाएगा क्या। इन्सान खुद अपने फैलाए अज्ञान के जाल में उलझा हुआ है उससे ही नहीं निकल पा रहा हैं। काल को उलझाने की जरूरत नहीं है भाई आपको लखचौरासी में भेजने के लिए। आपका अज्ञान ही काल अर्थात ब्रह्म अर्थात भ्रम होता है।
वह कोई किसी स्थान पर नहीं बैठा। आपका इन्तज़ार करेगा आपका शरीर कब मरेगा ओर वह लेने आएगा। मुर्ख बन रहा इन्सान अपने ही अज्ञान में। जीव के शिवाय कुछ भी नहीं है इस पुरे ब्रह्मांड में जिवित। आप अज्ञान में निर्जीव चीजों को धारण व पकड़ हुए हैं। सत्य भेद नहीं होने के कारण आप छोड़ने मे असमर्थ है।
छोडऩा तो दुर आप तो अज्ञान में मृत चीजो को पुजा पाठ मन्त्र ध्यान योग तप समाधी आदी लगाकर प्राप्त करते हो। ओर ऐसा ही असत्य ज्ञान लिख रखा ग्रन्थों में स्वयं जीव ने। ऐसे ही अधुरे अज्ञानी गुरु चेले बना रखे है अज्ञानी जीव ने। तो बताओ आपको फिर सत्य कौन बता सकता है। कैसे छुटोगे आप काल बन्धन से। सत्य ज्ञान अर्थात परमात्मा को आप पहचानते नहीं अहकांर के कारण।
क्योंकि आपका सब असत्य किया कराया नष्ट-भ्रष्ट हो जाएगा। क्योंकि आपको असत्य अति प्रिय हैं। आपको मौत के बन्धन में किसी ने नहीं बाधं रखा। आप स्वयं बन्धन में बन्धे हुए हैं। बन्धन से आजाद होना मनुष्य के लिए कोई मुश्किल कार्य नहीं है।
आपने इसे अज्ञान में नामुमकिन बना रखा है। जन्मो जन्म से भुगत रहे हैं। ये रहस्य इतना गहरा आपने बना दिया है जिसका कोई ओर छौर आपको दिखाई नहीं दे रहा है। क्योंकि युगों लग गये आपको ये जाल बुनने में। ओर अभी भी बुन रहे हैं।
एक पुर्ण शब्द भेदी गुरु आपका बनाया जाल ही तो काटता है सत्य ज्ञान द्वारा भेद समझाकर। निकलना तो आपने ही होगा भाई मेरे। क्योंकि आजादी आपको चाहिए। आप सत्य समझने की बजाए एकदम विपरीत चलते हो। मै आपके कर्म के खिलाफ नहीं हूं बल्कि असत्य कर्म के खिलाफ हूं। यदी सत्य ज्ञान प्राप्त करने के बदले आपके हजार शिश भी कटे तो कम है। ओर तीनों लोक परलोक का धन वैभव भी आप कुर्बान करें तो सत्य ज्ञान के सामने उसका रती भर, भार भी नहीं है। आपके सामने केवल नैतिक ज्ञान ही रखा जा रहा है। वह भी आप समझ नहीं पा रहे हैं। विचार करो सत्य ज्ञान कितना आनदंमय होगा। आपकी सब प्यास बुझ जाएगी जीते जी ही।
शब्द गुरु की कृपा से ये सत्य आपके सामने रख रहा हूँ लेकिन आप मुझे पहचान ही नहीं रहे हैं। एक गर्भ देहगुरु आपको सत्य नहीं बता सकता मुक्ति का। ओर ये जगत के ग्रन्थ तो कभी नहीं। आप पुरी तसल्ली से सत्य को बुद्धि व विवेक से परखिए फिर पुर्ण श्रद्धा विश्वास बनाकर शरण में आईये ओर सत्य समझिए ।
बिल्कुल खाली दिमाग किजिये अपना असत्य से। तभी सत्य आप समझ सकते हैं। इसलिए कहता हूँ ये मनुष्य जन्म बेकार मत किजिये क्योंकि ये आजादी की क्षमता केवल मनुष्य जीवन मे है जीते जी। शरीर मरने के बाद नहीं। आशा करता हूं कि आपका विवेक में बढोत्तरी जरुर हुई होगी। इसमे जोर जबरदस्ती नहीं चलेगी स्वयं जो आपको सही लगे वही मार्ग अपनाईये सत्य का या असत्य का। परीणाम आपको वही मिलेगा जो अपनाओगे। इसलिए स्वयं का परीक्षण किजिये बाहरी चीजों का नहीं।
आप ही सबकुछ है। इस सत्य को मानिए मै सत्य कह रहा हूं। बस भेद समझ जान लिजिए ये असत्य का तिस्लिम कैसे तौडना है ओर निकलना कैसे है। ज्यादा लम्बा चौड़ा भेद नहीं है ये। ना ही आपने शरीर को कोई कष्ट देना है। ना घर बार छोडना है। ना मन्त्र तन्त्र तप जाप योग समाधी ध्यान आदी करना है। बस सत्य समझकर भेद जानना है। अर्थात निकलने का रास्ता जानना है ओर याद रखना है। इसे ही सत्य का स्मरण कहते हैं।
यदी आपको रास्ता नहीं मालूम होगा तो आप निकलेगें कैसे ।फिर तो आप शरीर के 9 खुले द्वारों व 2 बन्द द्वार से ही निकलेगें जो असत्य में ही आपको भेज देगें। फिर वही पाखडं आप दोहराना। यही महादुर्गती का कारण बना हुआ है। आज के लिए यही काफी है। पुरी निष्पक्षता से सत्य पर विचार किजिये ।
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