अकाल मृत्यु की धारणा के अनुसार, यह एक धार्मिक विश्वास है जिसमें माना जाता है कि कुछ व्यक्तियों का मृत्यु काल के अनुसार नहीं होता है, बल्कि उनकी मृत्यु उनके कर्मों के प्रभाव से होती है। अकाल मृत्यु के अनुसार, आत्मा उसके कर्मों के फल को अनुभव करने के लिए इस संसार में फिर से जन्म लेती है, और जब उसके कर्मों का संसारी अनुभव पूरा होता है, तो वह परमात्मा में लिप्त हो जाती है।
यह एक प्रकार की संसारिक संसारिक संविदा है, जिसमें आत्मा को उसके कर्मों के अनुसार फल और अनुभवों का भोग करना पड़ता है, और जब उसके संसारी बंधन पूर्ण हो जाते हैं, तो वह परमात्मा में समाहित हो जाती है।
यह विचार विभिन्न धार्मिक और आध्यात्मिक परंपराओं में पाया जाता है, और इसके पीछे विशिष्ट धारणाएं और आध्यात्मिक अभ्यास होते हैं।
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क्या अकाल मृत्यु होने पर आत्मा यहीं पर भटकती रहती है और उम्र पूरी करने के बाद ही परमात्मा में जाकर मिलती है?
जब आत्मा एक शरीर छोड़ती है तो पल भर में ही दूसरा शरीर प्राप्त कर लेती है। इससे फर्क नहीं पड़ता की मृत्यु अकाल हुई है या पूरी आयु पाकर हुई है।
सर्वप्रथम तो हम इसी बात पर गलत है अथवा भ्र्म में है की किस उम्र की मृत्यु को अकाल कहा जाता है और किसे पूरी उम्र पाना। यहाँ सभी अपनी अपनी आयुष्य लेकर आये है और वो भी अपने कर्म के अनुसार।
इसलिए किसी मिथ्यात्व में न रहे और अच्छे कर्म करे।
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