आपने आत्मा की मुक्ति की बात की। इसका अर्थ है आपको ज्ञात है कि आत्मा किसी बंधन में है। मुक्ति का मार्ग सर्वप्रथम बंधन के ज्ञान से शुरू होता है। अपनी आत्मा के सारे बंधन को पहचानिए। आपका लोभ, माया, भावनाएं, रिश्ते, कामनाएं, और यह शरीर सब बंधन ही तो है। एक जीवन में एक साथ इन सभी से मुक्ति पाना असंभव सा प्रतीत होता है। इसीलिए शायद जन्मों जन्मांतर का सफर तय करना पड़ता है मुक्ति के लिए। परन्तु पिछले जन्म की सफर में उन्नति इस जन्म मे हम भूल जाते है। फिर से जीवन एक कोरा कागज़ बन जाता है।फिर उसी कागज़ पर वहीं बातें उकेरी जाती है। वहीं भावनाएं, वहीं रिश्ते, वहीं मृग तृष्णा। इसलिए ज्ञान का मार्ग जितनी जल्दी मिल जाए, उतना बेहतर। शुरुआत में बंधन कमज़ोर होते है, जीवन के मसले आपके हाथ में होते है। उस समय आत्मा को मुक्त करना आसान होता है। जितना समय बीतेगा उतना ही आप मुक्ति से दूर अपने को बंधनों में जकड़ते जाएंगे। अंत में ज्ञान भी प्राप्त करेंगे तो वह भी शूल की भांति चुभेगा। जान कर भी अधोगति प्राप्त होना भी पीड़ा ही तो है। इसलिए जीवन में शिक्षा और संस्कार का महत्व होता है। आजकल ऐसी शिक्षा नहीं दी जाती, इसलिए हम बंधन में है और रहेंगे।
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