जीवन की निर्धारित अवधि पूरी होने से पहले नियत विधान से हटकर हुयी असमय हुयी मृत्यु के बाद जीवात्मा की अवस्था बड़ी पीड़ादायक हो जाती है। जीवात्मा मृत्यु के समय अपनी सबसे प्रबल वासना के साथ साथ मृत्यु की पीड़ा को साथ लिए हुए एक नया वासना शरीर पाता है जिसे प्रेत कहते हैं। यह शरीर इंसानो को न दिखने के साथ प्रबल प्राणमय होता है। इस कारण ये प्रेत बहुत कुछ करने में समर्थ होते हैं लेकिन इनके बंधन बहुत होते हैं इसलिए इनका मानव जीवन में हस्तक्षेप बहुत कम हो पाता है। इनका अपना स्वयं का एक जीवन चक्र होता है।

मान लीजिये की अकाल मृत्यु के समय जीवात्मा की मानव जीवन में ४० वर्ष की अवधि शेष थी। इस स्थिति में उसके प्रेत को इसकी दुगुनी से १० गुनी अवधि तक प्रेत विश्व में रहना पड़ सकता है। यह प्रेत लोक कहीं और नहीं वरन हमारे ही इर्द गिर्द किसी और आयाम में होता है। इस अवधि में प्रेतात्मा की भी आयु बढ़ती है और वह एक समय अपनी प्रेत जीवन अवधि काट कर उस योनि से मुक्त होगा।

उदहारण स्वरुप यदि किसी बालक की असमय मृत्यु हुयी है तो वह भी प्रेत योनि में धीरे-धीरे युवावस्था प्राप्त करके वृद्धावस्था प्राप्त करेगा। लेकिन यह अवधि हमारे मानावे जीवन से अत्यधिक धीमी और बहुत पीड़ादायक होगी। इस प्रकार कई प्रेत १०० -२०० साल से ४०० -५०० या हज़ार वर्षों तक भी जीवित रह सकते हैं।

इनके जीवन का अवधि आदि के साथ साथ इनकी शक्तियों आदि में भी बढ़ोतरी होती है और उसमें भी यह विभिन्न श्रेणियों जैसे अघोरी, श्मशान काली आदि की स्थिति प्राप्त करते हैं। परन्तु इनका जीवन कभी सुखमय नहीं होता। जरा सोचिए यदि रोज मृत्यु के समय के कष्ट का अनुभव झेलना पड़े तो यह किस प्रकार से सुखद होगा। अतः यह एक प्रकार से नर्क ही है। इस अवस्था में प्रेतात्माएं हमेशा मुक्ति की कामना करती रहती हैं।

अपनी अवस्था से निरंतर दुखी ये प्रेत मानव जीवन में उनके विचारों को प्रभावित करते हैं और अक्सर जहाँ बुरे कर्म होते हैं वहां ये सूक्ष्म रूप से प्रभावी रहते हैं। व्यक्ति को पता नहीं चलेगा पर अचानक उसके में में बुरे कर्म करने की प्रेरणा आएगी। हालाँकि केवल प्रेतात्मा इसकी दोषी नहीं है उस व्यक्ति के कुसंस्कार और बुरी इच्छाएं ही मुख्य कारण होती हैं। प्रेतात्मा केवल एक कैटेलिस्ट की तरह इसे कई गुना बढ़ा देते हैं। यही नहीं ये प्रेतात्माएं बड़ी-बड़ी दुर्घटनाएं आदि भी कराने में बहुत बड़ा कारण होते हैं। एक बार मानव जीवन से नाता टूटने के बाद इनकी मानवीय संवेदनाएं बहुत क्षीण हो जाती हैं।

दूसरा इनके प्रेत विश्व में केवल मानव प्रेत ही नहीं वरन कई और शक्तिशाली इतर योनियों का भी वास होता है जो कभी मानव जन्म लेती ही नहीं डाकिनी, शाकिनी, छलावा आदि। यह सब इन अकाल मृत्यु से ग्रस्त कमजोर प्रेतों को बंधक बनाकर इनकी बहुत दुर्गति करते हैं। जो आपने धरती पर देखा नहीं होगा ये उन अवस्थाओं से भी गुजरते हैं। प्रेत अवस्था में ये धरती के गुरुत्वाकर्षण के बाहर नहीं जा सकती और साधारणतः अपने नियत क्षेत्र के आस पास ही रहती हैं।

तिस पर यदि किसी तांत्रिक आदि ने इन्हे सिद्ध कर लिया तो उन्हें उसकी कैद में रहना पड़ सकत है। कभी कभी इन्हे सिद्ध करने में इनके मानव शरीर के बचे अवशेषों जैसे खोपड़ी या हड्डी आदि का प्रयोग होता है। इस दशा में तांत्रिक पहले इनका भरपूर प्रयोग करेगा और अपने मरने के बाद अपने शिष्य परंपरा में खोपड़ी आदि अपने शिष्यों को दे जायेगा। फिर प्रेतात्मा की गुलामी वर्षो या कई पीढ़ियों तक नहीं छूटती। एक के बाद एक कई सौ साल भी जा सकते हैं इनकी गुलामी में। हालाँकि तांत्रिक आदि भी अच्छी अवस्था को नहीं प्राप्त होते। गीता में कहा गया है की जो जिसको भजता है वह उसी को प्राप्त होता है । अब जब जीवन पर्यन्त तांत्रिक ने प्रेतों से काम लिया तो वही भी अधिकतर उन्ही की गति को प्राप्त होता है।

प्रेत अवस्था से मुक्ति :

  • असमय अकाल मृत्यु होने पर जीवात्मा की सद्गति के लिए सनातन धर्म में कई सारे विधान बताये गए हैं। इनमें से नारायण बलि यज्ञ किया जाता है।
  • श्राद्ध आदि कर्म भी पूरे सही विधि विधान से करने चाहिए। इनसे प्रेत यमलोक अथवा पितर लोक पहुँच जाता है और विधि के नियमानुसार अपने अगले जन्म की तैयारी करता है।
  • कभी-कभी किसी इच्छावश भी प्रेत बंधा रहता है और उस इच्छा के पूर्ण होने पर भी उसकी आगे गति हो जाती है।
  • गया श्राद्ध भी बहुत शक्तिशाली विधान है और आपके पितर -प्रेतों को कष्ट से छुड़ाकर बहुत सुख पहुँचाता है।
  • इसके आलावा प्रेत के निमित्त श्रीमद्भगवद का पाठ शिव पुराण का पाठ त्वरित मुक्ति प्रदान करता ह।
  • गीता के सातवें , आठवें अध्याय का पाठ भी भूत प्रेत को उनकी वस्तुस्थिति का ज्ञान देता है उन्हे मुक्ति के लिए प्रेरित करता है।
  • एकादशी आदि व्रतों के फल का प्रेतात्म के निमित्त दान भी उन्हें मुक्त कर सकता है।
  • इसके अलावा सिद्धों का आशीर्वाद भी इन जीवात्माओं को मुक्त कर सकत हैं। परन्तु आज कल कलियुग में ऐसे तपस्वी समाज में नहीं रहते। ठग अधिक हैं इसलिए उनसे बचें और शास्त्रोक्त विधानों पर अमल करें।

यदि यह विधान आप करेंगे तो अकाल मृत्युग्रस्त जीवात्मा की शीघ्र मुक्ति होगी अन्यथा उसे अपना कष्टदायक नर्क सामान लम्बा प्रेत जीवन जीते हुए अगली योनियों में उसके बाद ही गमन होगा। बाद वाली स्थिति में उसकी बुद्धि दूषित रहने की सम्भावना अधिक है। विधि क्रिया आदि करने पर उनकी स्वभाव में कुछ सात्त्विकता का समावेश भी अवश्य होगा।

जय श्री हरि नारायण !

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