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अकाल मृत्यु की धारणा एक गहरा और जटिल विषय है, जो विभिन्न संस्कृतियों और धार्मिक परंपराओं में पाया जाता है। यह विचार यह बताता है कि मृत्यु केवल एक शारीरिक घटना नहीं है, बल्कि यह आत्मा के कर्मों और आध्यात्मिक यात्रा से जुड़ा हुआ है। मुख्य बिंदु यह है कि अकाल मृत्यु के अनुसार, आत्मा को उसके कर्मों के अनुसार फल और अनुभवों का भोग करना पड़ता है, और जब उसके संसारी बंधन पूर्ण हो जाते हैं, तो वह परमात्मा में समाहित हो जाती है। यह विचार पुनर्जन्म और कर्म के सिद्धांतों पर आधारित है, जो यह बताते हैं कि…

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अकाल मृत्यु की धारणा के अनुसार, यह एक धार्मिक विश्वास है जिसमें माना जाता है कि कुछ व्यक्तियों का मृत्यु काल के अनुसार नहीं होता है, बल्कि उनकी मृत्यु उनके कर्मों के प्रभाव से होती है। अकाल मृत्यु के अनुसार, आत्मा उसके कर्मों के फल को अनुभव करने के लिए इस संसार में फिर से जन्म लेती है, और जब उसके कर्मों का संसारी अनुभव पूरा होता है, तो वह परमात्मा में लिप्त हो जाती है। यह एक प्रकार की संसारिक संसारिक संविदा है, जिसमें आत्मा को उसके कर्मों के अनुसार फल और अनुभवों का भोग करना पड़ता है, और…

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मानव शरीर ही एकमात्र ऐसा शरीर है जिसमें जीव चेतना के उच्च आयामों को अनुभव कर सकता है। मानव शरीर के मेरुदण्डीय संरचना की वजह से ऐसा संभव है। मूलाधार निवासिनी ऊर्जा /शक्ति या प्रकृति को सुषुम्ना मार्ग से होते हुए सहस्रार स्थित शिव से मिलन ही मोक्ष है और फिर देहत्याग के समय ब्रह्मरंध्र से यह ऊर्जा बाहर निकले तो जीव संसार चक्र अर्थात पुनर्जन्म से मुक्त हो जाता है। इसके लिए सनातन परंपरा में अनेक प्रकार की साधनाएँ हैं। मुक्ति का यह प्रसाद किसी भी अन्य योनि के प्राणियों चाहे -जंतु, पशु, सरीसृप, जलचर, नभचर, यक्ष, गंधर्व, किन्नर,…

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प्रिय मित्र सभी प्राणियों में एक समान जीव रहता है आत्मा नहीं। जैसे धातु से भिन्न-भिन्न प्रकार की गाडिय़ां बनाई जाती है कार मोटरसाइकिल ट्रक रेल जहाज किस्ती आदी। पर चलाने वाला ड्राइवर जीव ही होता है। इसका मतलब यह नहीं की जीव गाड़ी बन जाता है। क्योंकि ड्राइवर हर प्रकार की गाड़ी चलाना जानता है। इसलिए यह भ्रम तो दिमाग से निकाल दे की जीवात्मा अलग अलग होती है। ये गाड़ी अर्थात मन व शरीर अलग अलग होते हैं। इसलिये विचार अलग बन जाते हैं ओर कर्म भी। जीवात्मा मन को चला रही है। मन व शरीर एक ही…

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आपने आत्मा की मुक्ति की बात की। इसका अर्थ है आपको ज्ञात है कि आत्मा किसी बंधन में है। मुक्ति का मार्ग सर्वप्रथम बंधन के ज्ञान से शुरू होता है। अपनी आत्मा के सारे बंधन को पहचानिए। आपका लोभ, माया, भावनाएं, रिश्ते, कामनाएं, और यह शरीर सब बंधन ही तो है। एक जीवन में एक साथ इन सभी से मुक्ति पाना असंभव सा प्रतीत होता है। इसीलिए शायद जन्मों जन्मांतर का सफर तय करना पड़ता है मुक्ति के लिए। परन्तु पिछले जन्म की सफर में उन्नति इस जन्म मे हम भूल जाते है। फिर से जीवन एक कोरा कागज़ बन…

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अकाल मृत्यु कैसे और क्यों होती है? इसके पश्चात आत्मा एक स्थान पर क्यों बंध जाती है, उसे कब और कैसे मुक्त मिलती है? यह शरीर पंच भूतों से बना है और इसमें जीव रहता है ना की आत्मा जब तक जीव है तब तक जीवन है जब तक शरीर में जीव है तब तक सजीव है जीव के बिना सभी निर्जीव है। यदि कोई ऐसी परिस्थिति आ जाती है जिससे यह शरीर नष्ट होने अथवा जीव के रहने के योग्य नहीं रह जाता तो यह शरीर से बाहर निकल जाता है। जैसे कोई मकान गिरने लगता है जर्जर हो…

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गरुड़ पुराण के अनुसार यदि किसी व्यक्ति की अकाल मृत्यु हो जाती है तो उसके परिजनों को उस व्यक्ति का तर्पण नदी या तालाब में करना चाहिए। और उसकी आत्मा की इच्छा पूर्ति के लिए पिंडदान और दान पुण्य जैसे अच्छे कर्म करने चाहिए। यह कर्म कम-से-कम तीन से चार वर्षों तक करना चाहिए। ऐसा करने से भटकती आत्मा को मुक्ति मिल पाती है।

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सर्वप्रथम कोई मृत्यु असमय नहीं होती केवल आत्महत्या को छोड़कर। आत्मा का भटकना उसकी इच्छाओं पर निर्भर है। यदि आत्मा मृत्यु को स्वीकार नहीं करती, ऐसे में वह भटकती है। ऐसी आत्मओं का हश्र भी बहुत बुरा होता है। कभी किसी दुष्ट तांत्रिक की ग़ुलाम बन जाती है, कभी दुसरे शक्तिशाली प्रेतों की ग़ुलाम। ऐसे में बुरे कर्म इनसे करवाये जाते है, और ऐसी आत्माएं फिर मुक्ति के मार्ग पर लौट कर नहीं आ सकती। हाँ, यदि कोई अच्छा साधक इनकी मुक्ति करवाएं, तो अवश्य ही अनेक योनि में जन्म ले यह वापस जन्म मरण के बंधन से कर्मों द्वारा…

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जीवन की निर्धारित अवधि पूरी होने से पहले नियत विधान से हटकर हुयी असमय हुयी मृत्यु के बाद जीवात्मा की अवस्था बड़ी पीड़ादायक हो जाती है। जीवात्मा मृत्यु के समय अपनी सबसे प्रबल वासना के साथ साथ मृत्यु की पीड़ा को साथ लिए हुए एक नया वासना शरीर पाता है जिसे प्रेत कहते हैं। यह शरीर इंसानो को न दिखने के साथ प्रबल प्राणमय होता है। इस कारण ये प्रेत बहुत कुछ करने में समर्थ होते हैं लेकिन इनके बंधन बहुत होते हैं इसलिए इनका मानव जीवन में हस्तक्षेप बहुत कम हो पाता है। इनका अपना स्वयं का एक जीवन…

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1 – यदि अकाल मृत्यु का भय सताता है ,तो ये श्रेष्ठ उपाय है। किसी भी सोमवार से शुरू कीजिए। लगातार 7 सोमवार करना है। सुबह सूर्योदय के पश्चात , नित्ये कर्म से निवृत होकर किसी भी शिव मंदिर में जाईये। शक्कर मिश्रित दूध से शिवलिंग का अभिषेक कीजिए और निम्न मंत्र की एक माला ( 108 बार ) का जाप कीजिए। अकाल मृत्यु का भय समाप्त होगा और अकाल मृत्यु नहीं होगी। “ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। , उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥” 2 – यदि मृत्यु के देवता यमराज के पिता सूर्य देव की कृपा जिस व्यक्ति पर होती…

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