गौमाता (गाय) से जुड़े 10 अचूक उपाय (टोटके ) जो आपके जीवन में सफलता प्रदान करेंगे (1) जन्म कुंडली (शुक्र) के दोषों का नाश यदि आप अपनी जन्म कुंडली में ग्रहों के बीच प्रभाव से परेशान हैं तो इसके लिए भी ज्योतिषीय उपाय मौजूद हैं। किसी की जन्म कुंडली में यदि शुक्र अपनी नीच राषि कन्या पर हो या शुक्र की दशा चल रही हो तो प्रातःकाल के भोजन में से एक रोटी सफेद रंग की देशी गाय को 43 दिन तक लगातार खिलाने से शुक्र का नीचत्व एवं शुक्र संबंधित कुदोष स्वतः ही समाप्त हो जाते हैं। इसके अलावा गौ को रोटी देने से जन्मपत्री में यदि पितृदोष हो तो वह भी हमेशा के लिए समाप्त हो जाता है। (Published on Speaking Tree) (2) ऐसी मान्यता है की जो गौमाता के खुर से उड़ी हुई धूलि को सिर पर धारण करता है (जिसे गौधूलि कहते है), वह मानों तीर्थ के जल में स्नान कर लेता है और सभी पापों से छुटकारा पा जाता है । गोधूलि योग ज्योतिष शास्त्र में गोधूलि नामक एक योग होता है, यह योग गाय से संबंधित है। इस योग के संदर्भ में ऐसा माना जाता है कि यदि किसी के विवाह के लिए उत्तम मुहूर्त नहीं मिल रहा है या फिर भविष्य में किसी के वैवाहिक जीवन में परेशानियां आने के संकेत हैं और उन्हें दूर करना चाहते हैं तो गोधूलि योग में वर-वधु का विवाह करें। (Published on Speaking Tree) (3) प्राचीन ग्रंथों में सुरभि (इंद्र के पास), कामधेनु (समुद्र मंथन के 14 रत्नों में एक), पदमा, कपिला आदि गायों महत्व बताया है। जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभ देवजी ने असि, मसि व कृषि गौ वंश को साथ लेकर मनुष्य को सिखाए। हमारा पूरा जीवन गाय पर आधारित है। शिव मंदिर में काली गाय के दर्शन मात्र से काल सर्प योग निवारण हो जाता है I (4) गाय के पीछे के पैरों के खुरों के दर्शन करने मात्र से कभी अकाल मृत्यु नहीं होती है। गाय की प्रदक्षिणा करने से चारों धाम के दर्शन लाभ प्राप्त होता है, क्योंकि गाय के पैरों में चार धाम है। (5) गौ माता की रीढ़ की हड्डी में सूर्य नाड़ी एवं केतुनाड़ी साथ हुआ करती है, गौमाता जब धुप में निकलती है तो सूर्य का प्रकाश गौमाता की रीढ़ हड्डी पर पड़ने से घर्षण द्धारा केरोटिन नाम का पदार्थ बनता है जिसे स्वर्णक्षार कहते हैं। यह पदार्थ नीचे आकर दूध में मिलकर उसे हल्का पीला बनाता है। इसी कारण गाय का दूध हल्का पीला नजर आता है। इसे पीने से बुद्धि का तीव्र विकास होता है। जब हम किसी अत्यंत अनिवार्य कार्य से बाहर जा रहे हों और सामने गाय माता के इस प्रकार दर्शन हो की वह अपने बछड़े या बछिया को दूध पिला रही हो तो हमें समझ जाना चाहिए की जिस काम के लिए हम निकले हैं वह कार्य अब निश्चित ही पूर्ण होगा। धार्मिक ग्रंथों में लिखा है “गावो विश्वस्य मातर:” अर्थात गाय विश्व की माता है। (6) गौ माता का जंगल से घर वापस लौटने का संध्या का समय (गोधूलि वेला) अत्यंत शुभ एवं पवित्र है। गाय का मूत्र गो औषधि है। मां शब्द की उत्पत्ति गौ मुख से हुई है। मानव समाज में भी मां शब्द कहना गाय से सीखा है। जब गौ वत्स रंभाता है तो मां शब्द गुंजायमान होता है। (7) गौ-शाला में बैठकर किए गए यज्ञ हवन ,जप-तप का फल कई गुना मिलता है। बच्चों को नजर लग जाने पर, गौ माता की पूंछ से बच्चों को झाड़े जाने से नजर उत्तर जाती है, इसका उदाहरण ग्रंथों में भी पढ़ने को मिलता है, जब पूतना उद्धार में भगवान कृष्ण को नजर लग जाने पर गाय की पूंछ से नजर उतारी गई। (8) गौ के गोबर से लीपने पर स्थान पवित्र होता है। गौ मूत्र का पवित्र ग्रंथों में अथर्ववेद, चरकसहिंता, राजतिपटु, बाण भट्ट, अमृत सागर, भाव सागर, सश्रुतु संहिता में सुंदर वर्णन किया गया है। गौमूत्र से बहुत सारे असाध्य रोगों जैसे कैंसर आदि का इलाज़ होता हैI काली गाय का दूध त्रिदोष नाशक सर्वोत्तम है I (9) नौकरी ढूंढने के लिए या उससे जुड़ा कोई भी कार्य करने जाते हो और रास्ते में आपको गाय दिखाई दे तो उसको आप आटा और गुड़ खिला दीजिये I आपकी मनोकामना आवस्य पूर्ण होगी और आपको निश्चित ही नौकरी मिल जायेगी I (10) गौमाता को जूठी रोटी नहीं खिलानी चाहिए क्योकि गाय को लक्ष्मी का रूप माना गया है और उसमे सभी तेतीश करोड़ देवी-देवताओ का निवास भी होता है ऐसा हमारे धर्म ग्रंथो में बताया गया है I भला गौमाता अर्थात लक्ष्मी को कोई जूठी रोटी खिलाकर कोई कैसे सुखी रह सकता है ? (11) गरुड़ पुराण- भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ ने भी गरुड़ पुराण में गायों के महत्व का उल्लेख किया है। उनके अनुसार जीवन के बाद मोक्ष प्राप्ति का सीधा मार्ग गाय की सेवा ही है। आप जितनी निष्ठा से उनकी सेवा करेंगे, उनका आदर-सम्मान करेंगे, उनकी देखभाल करेंगे, उतने ही पुण्य प्राप्त करके मृत्यु के बाद मोक्ष हासिल करेंगे। पौराणिक तथ्यों के अनुसार गाय के सींग में ब्रह्मा विष्णु महेश का वास होता है। गौ के ललाट में गौरी तथा नासिका के अस्ति भाग मे भगवान कार्तिकेय प्रतिष्ठित हैं। इसके अलावा गौ माता में तीर्थों का निवास भी माना जाता है। कहते हैं कि 68 करोड़ तीर्थ एवं 33 करोड़ देवी-देवताओं का चलता-फिरता विग्रह गाय ही है। (12) गौ माता में तीर्थों का निवास तो यदि आप किसी कारणवश तीर्थ जाने में असमर्थ हैं तो गाय की सेवा करें, आपको सभी तीर्थों का पुण्य प्राप्त हो जाएगा। गाय के दूध, घी, दही, गोवर, और गौमूत्र, इन पाँचो को ‘पञ्चगव्य’ के द्वारा मनुष्यों के सभी रोग एवं पाप दूर होते है I गौ के “गोबर में लक्ष्मी जी” और “गौ मूत्र में गंगा जी” का वास होता है I (13) ‘गोप अष्टमी’, कहते हैं इस दिन यदि खास उपाय किए जाएं जीवन भर के लिए सुख-समृद्धि के मार्ग खुल जाते हैं।गोप अष्टमी का उल्लेख ‘निर्णयामृत’ एवं ‘कूर्मपुराण’ में किया गया है। कार्तिक शुक्ल अष्टमी को प्रातः काल के समय गौओं को स्नान कराएं, गंध पुष्पादि से पूजन करें तथा अनेक प्रकार के वस्त्रालंकार से अंलकृत करके उनके गोपालां (ग्वालों) का पूजन करें।इसके बाद गायों को गौ ग्रास देकर उनकी परिक्रमा करें और थोड़ी दूर तक उनके साथ जाएं, मान्यता है कि ऐसा करने से सब प्रकार की अभीष्ट सिद्धि होती है। इसी गोपाष्टमी को सायं काल के समय जब गाय चरकर वापस आएं, तो उस समय भी उनका आतिथ्य अभिवादन करें, कुछ भोजन कराएं और उनकी चरणरज को मस्तक पर धारण कर ललाट पर लगाएं तो जीवन में सौभाग्य की वृद्धि होती है। (14) पौराणिक तथ्यों के अनुसार गाय के सींग में ब्रह्मा विष्णु महेश का वास होता है। हिन्दू धर्म के प्रसिद्ध धार्मिक ग्रंथों में से एक भविष्य पुराण में कहा गया है – शृंगमूले गवां नित्यं ब्रह्मा विष्णुष्च संस्थितौ । श्रंरग्राग्रे सर्व तीर्थानि स्थावराणि चराणि च।। षिवो मघ्ये महादेवः सर्वकारण कारणम। ललाटे संस्थिता गौरी नाषावंषे च शणमुखः।। तात्पर्य है कि गौओं के सींग की जड़ में सदा ब्रह्मा और विष्णु प्रतिष्ठित हैं। सींग के अग्र भाग में चराचर समस्त तीर्थ प्रतिष्ठित हैं, मध्य भाग में ब्रह्मा जी हैं। गौ के ललाट में गौरी तथा नासिका के अस्ति भाग मे भगवान कार्तिकेय प्रतिष्ठित हैं। इसके अलावा गौ माता में तीर्थों का निवास भी माना जाता है। कहते हैं कि 68 करोड़ तीर्थ एवं 33 करोड़ देवी-देवताओं का चलता-फिरता विग्रह गाय ही है। (15) हिन्दू धर्म के महानतम ग्रंथ महाभारत में गौ पूजा से संबंधित कुछ बातें उल्लेखनीय हैं। इसमें कहा गया है कि जो व्यक्ति, गाय माता (हिन्दू धर्म में गाय को माता की उपाधि दी गई है) की सेवा और सब प्रकार से उनका अनुगमन करता है उस पर संतुष्ट होकर गौएं उसे अत्यन्त दुर्लभ वर प्रदान करती हैं। ऐसी भी मान्यता है कि गाय की सेवा के साथ-साथ उसकी साफ-सफाई का भी ध्यान रखें, उन्हें समय से भोजन कराएं, उनके आसपास के वातावरण को साफ-सुथरा रखें और उन्हें मक्खी-मच्छर से भी बचाएं तो उस व्यक्ति को कपिला गाय के बराबर पुण्य प्राप्त होता है।
Author: News India Web
चमत्कारी मंत्र जिससे लाखों मरीज ठीक हुए (ओशो) [Osho] ओशो- चमत्कारी मंत्र जिससे लाखों मरीज ठीक हुए मंत्र का अर्थ है जो बार-बार पुनरुक्त करने से अपनी शक्ति को अर्जित करें I जिसकी पुनरुक्ति शक्ति संचय करें I जिस विचार को भी बार-बार पुनरुक्त करोगे वह धीरे-धीरे आचरण बन जाएगा I जिस विचार को बार-बार दोहराएंगे,जीवन में वह प्रकट होना शुरू हो जाएगा I जो भी आप है, वह आपके द्वारा अनंत बार कुछ विचारों को दोहराए जाने का परिणाम है I सम्मोहन पर बड़ी खोज हुए I आधुनिक मनोविज्ञान सम्मोहन के बड़े गहरे तलो को खोजा है I सम्मोहन की प्रक्रिया का गहरा सूत्र एक ही…
इस Affirmation को आप बार बार पढ़े I यह Affirmation ईश्वर के साथ जो कनेक्शन है उसके बारे में बात करता हैं I ये Affirmation आपके विचारों में clarity लाता है और ये पढ़ने से आपके जो भी Blockages होंगे वो step by step clear होते जाएंगे I इस Affirmation को बार- बार पढ़े और इसका फीडबैक हमारे साथ जरूर शेयर करें और इस Affirmation में जो भी वाक्य आपको सबसे ज्यादा अच्छा लगा है जो आपके लिए अप्लाय करता है उसको जरूर कमेंट्स में टाइप करें क्योंकि कोई कोई Affirmation होते हैं वो एकदम आपको उसी क्षण में पता चल जाता है कि ये Affirmation मेरे लिए ही बना है । तो शुरू करते हैं Affirmation के बारे में और यह affirmation आप कभी भी पढ़ सकते है I सुबह उठने के बाद पढ़ सकते है I सोते वक्त भी पढ़ सकते हैं ।एक से अधिक बार भी पढ़ सकते हैं और इसको आप repeat करके भी पढ़ सकते है अब अपना Affirmation शुरू करते है I MOST IMPORTANT & POWERFUL AFFIRMATIONS© [IMP] मेरे शब्द कभी शून्य होकर नहीं लौटते । मेरे शब्द हमेशा ईश्वर के आशीर्वाद और कृपा से हर वो बात मेरे दिव्य योजना के अनुसार अवश्य पूर्ण करते हैं । ईश्वर अलगाव या विभाजन नहीं करते । इसीलिए मेरी अच्छाई भी अलगाव या विभाजन में अक्षम है । मेरी अच्छाई मेरा ही अविभाज्य अंश है । मेरी अच्छाई हमेशा मेरे साथ ही होती है इसलिए मेरे साथ…
ब से बनारस, मस्ती और महादेव की नगरी शुरुआत बनारस से क्योंकि बनारस शुरू से है। शहरों के बनने की शुरुआत से। बनारस मौज का शहर है मस्ती का शहर है। बाबा भोले के नशे में चूर अलमस्त शहर। मैंने नदियों के किनारे बसे बहुत से ऐतिहासिक सांस्कृतिक से दिखने वाले दकियानूसी नकली शहरों को भी देखा है। बनारस वैसा नहीं है। बनारस आपसे बहस नहीं करता है । वो जैसा है वैसा ही रहता है। आपको पसंद आए या ना आए। या तो आप बनारस के होते हैं या रंग बनारसी आप पर स्वयं चढ़ जाती है। बनारस ने अपनी यह संस्कृति खुद विकसित की है न ओढ़ी है न उधार मांगा है। इस शहर का मिज़ाज सबसे अलहदा है। शायद यही वजह है कि बनारस मुझे बेहद पसंद आता है। बनारसी चरित्र पसंद आता है। नदियों के किनारे बसे शहरों को देखकर अक्सर इंसान के अंदर दर्शन उभर आता है सोच गहरी हो जाती है। ये दर्शन उन शहरों को आम आदमी की पहुंच से दूर कर देता है। ऐसे में वह शहर लोगों को फिर नहीं समझ आता। इस तरीके का भाव उन शहरों को एक ख़ास तबके और एक ख़ास परिभाषा में बांध देता है।उसी तरह हरिद्वार सबको समझ नहीं आता है। वहां गंगा ज्यादा दिव्य और ज्यादा दूर-सी दिखती है। गंगोत्री, हरिद्वार, उज्जैन अनेक उदाहरण हैं, जो बहुत दिव्य हैं, पवित्र हैं, ऊर्जावान हैं, पर मस्त नहीं है। उनके लिए ये सब उदाहरण कठिन भी लगते हैं।संभवतः उन्हें समझना भी कठिन काम है। इनके उलट बनारस सरल है। वह अपने कठिन होने का एहसास आपको नहीं कराता है। घमंड नहीं दिखाता है, जिसको जितना समझना है, उसको उतना ही समझ आएगा। हर व्यक्ति को ऐसा लगेगा गोया बनारस इतना ही है, जितना उसे समझ आया। यह खासियत बनारस की है। सबको अपनी-अपनी दृष्टि से बनारस पूरा समझ आता है। पर आप उसे कितना भी कम समझें, बनारस आपको पूरा समझ लेता है। पूर्व और पश्चिम का मिलन द्वार बनारस पूर्व और पश्चिम भारत के मिलने का द्वार भी है। आज का गरीब पूर्वी भारत और धन का अमीर पश्चिमी भारत दोनों बनारस में मिलते है तो दोनों गायब हो एकमेक हो जाते है। दोनों बनारसिया उर्फ बनारसी हो जाते है। गरीब और अमीर का सबसे कम अंतर बनारस में ही नजर आता हैं। सैकड़ों धाराओं का मिलन स्थल बनारस। दक्षिण भारत से आए पुजारी उत्तर भारत(बनारस) के मंदिरों में घंटा बजा कर हिन्दी /संस्कृत की आरती/उद्घोष पढ़ते है। मारवाड़ी समाज जहाँ मस्ती में भी व्यापार पनपा देता है। मृतक को जलाने में रोजगार के अवसर जहाँ हो वो बनारस है। विरुध्दों का ऐसा सामंजस्य अन्यत्र दुर्लभ है।बनारस में एक अलग किस्म की बेफिक्री है, सब महादेव भरोसे। मुझे यह बेफिक्र-सी मस्ती बनारस में ही दिखी है। यह शहर जितना पुराना है उतना ही खुद में मस्त, अपनी धुन में सवार है। अच्छा! बनारस सबकी पहुँच में रहता है। अपने तमाम कर्मकांडों, संस्कारों के बीच बनारस में एक ठिठोली एक किस्म का छिछोरापन भी छुपा हुआ है, जो क्रोध नहीं पैदा करता बल्कि बरबस ही मुस्कुराने पर मजबूर कर देता है। यहाँ के घाटों पर जाकर देखिए, वहाँ रुकिए, उनको समझिए वह बात करते लगते हैं, गंगा माई की लहरों के साथ एक पूरा इतिहास उनसे गुजरता है और वहीं पूरा शहर बनारस आपको उन्हीं घाटों पर कुछ ना कुछ करते नजर आएगा। नदियों के किनारे बसे दूसरे सांस्कृतिक घाटों पर ऋषि-मुनि-सन्तजन तपस्या करते नजर आते हैं। लगता है कि जैसे मोक्ष यही मिलेगा इसी साधना से मिलेगा। एक साथ मंदिर की घण्टियाँ आरती के कर्णप्रिय गूंज के साथ साँझ के धुंधलके के साथ अजान की उठती आवाज बनारस को और विशिष्ट बनाती है। घाट की संगत, चिलम और दर्शन इधर एक जुमला चलता है – राँड़ सांढ़ सीढ़ी संन्यासी, इनसे बचे तो सेवें काशी। पर इन चारों के अतिरिक्त बनारस के घाटों पर चिलम भी एक अनिवार्य उपस्थिति है। बनारस के घाटों पर क्या साधु-संत, क्या आम आदमी, क्या अमीर, क्या गरीब सब के सब चिलम पी रहे होते हैं। एक पूरा जीवन नर्तन करता है इन घाटों पर। कोई फोटो खींचता है, कोई चित्र बनाता है। कोई कल्पना में डूबा होता है तो कोई भविष्य के खाके खींचने में मगन, सब के सब अपने-अपने नशे में चूर। जिसके पास कुछ नहीं है, वो भी चिलम मार रहा होता है, क्योंकि उसके पास तो वैसे भी कुछ है नहीं तो चिंता काहे की। जो करोड़ों अरबों की संपत्ति कूट चुका है वो एक अलग तरह की मानसिक चिंता में होता है, उस मानसिक विकृति के शिकार जीव में यह चिलम जीवन का अलग दर्शन सिखाता है जीवन के होने और ना होने के सारतत्व को यही बनारस के घाट समझा देते हैं। काशीनाथ सिंह ने यूँ ही ‘काशी का अस्सी’ नहीं लिखा मारा था। घाटों में अस्सी की महिमा तो अपरंपार है। ‘सुबह ए बनारस’ तो हमने हमेशा से सुना है लेकिन इसकी एक दार्शनिक छवि हिंदी के बड़े कवि केदारनाथ सिंह ने भी खींची है –इस शहर में वसंत अचानक आता है और जब आता है तो मैंने देखा है लहरतारा या मडुवाडीह की तरफ़ से उठता है धूल का एक बवंडर और इस महान पुराने शहर की जीभ किरकिराने लगती है…कभी सई-साँझ बिना किसी सूचना के घुस जाओ इस शहर में कभी आरती के आलोक में इसे अचानक देखो अद्भुत है इसकी बनावट यह आधा जल में है आधा मंत्र में आधा फूल में है आधा शव में आधा नींद में है आधा शंख में, अगर ध्यान से देखो तो यह आधा है और आधा नहीं भी है…यह भी बनारस है। सब बनारसिया, न उधो न माधो सब महादेव बनारस की एक और ख़ास बात है यहाँ सब बराबर होते हैं। कोई ऊंच नहीं कोई नीच नहीं। सब परेशान आते है पर यहाँ आकर अपनी सब परेशानी भूल जाते है। बनारस आपकी परेशानी का इलाज करने वाला हकीम की दुकान नहीं है। बनारस परेशानी के साथ मस्त रहना जीवन को उसकी मुकम्मल हालत में जीने का अर्थ सीखने का नाम है। लोग बनारस से रहना सीखते है रस-भरा जीवन जीना सीखते हैं। गालियां बनारस की संस्कृति है सच कहें तो बनारस की लोकसंस्कृतिक धारा का एक नमूना। जरा सोचिए! कितना मस्त शहर होगा कितने बिंदास लोग होंगे कि उनलोगों में नाममात्र की ऐंठ भी नहीं होती और एक दूसरे से मिलते ही एक दूसरे का अभिवादन महादेव से शुरू कर भोंसड़ी के से करते हैं। यह प्यार, विनम्रता और लहरिया उच्चारण से भरा वाक्य – “अरे ओ भोसडी के! जरा इधर आओ सारा ज्ञान उधरे टपका दोगे का बे?” बनारस का मित्रभाव है। मेरा दावा है किसी और शहर, किसी और लोकसंस्कृति में जाके इस तरह से बोलिए यकीन दंगा हो जाएगा। यह है खालिस बनारस।बनारसी खाली पीली नकली जिंदगी नहीं जीते है। बनारसी जीवन के अंतिम और शाश्वत सत्य को सैकड़ों हजारों साल पहले से समझ चुके हैं। इसलिए उनमें किसी से द्वेष, अहंकार और कटुता नहीं है। सब एक अलग किस्म के नशे में। मस्त हैं। बनारस में कोई तपस्या नहीं करता। बनारस को कोई ऋषि मुनि हाईजैक नहीं कर पाया। यहाँ बाबा भोले के नशे मै डूबने को ही मोक्ष प्राप्ति माना जा चुका है। व्यक्तिगत तौर पर मुझे बनारस का छिछोरा पन पसंद आया है। पंडितों का पाखंड बनारस में भी है पर बनारस पर किसी का एकाधिकार नहीं है। बिना रस के जीवन जी रहे पश्चिम के लोगों को बनारस क्यों भाता है बनारसिया ज्ञान की वजह से तो कतई नहीं। पर पश्चिम के लोगों को घोर आश्चर्य होता है यह देखकर कि ये कौन-सी कैसी दुनिया है। यहां इतना कष्ट है, परेशानी है, गरीबी है पर सब प्रसन्नचित्त क्यों है? यह बनारसी खुशी उन आधुनिक कहे जाने वाले देशों के लोगों को पचती नहीं है। पश्चिम का एक तबका है जो कहता है बनारस गंदा है लेकिन बनारस अपनी धारा में अलमस्ती में बेफिक्र बेलौस जीता रहता है ऐसे लोग बनारस का कुछ न बिगाड़ पाए, न उसकी छवि , ना उसका ढब। गंगा गंदी नहीं यहाँ, औघड़ दृष्टि से देखो गंगा की बरसाती मिट्टी गंदी नहीं होती है। गंदा और साफ इसका अंतर हमे अपने हिसाब से ढूंढना होगा। मुझे तो तब बहुत ही ज्यादा गंदा लगता है,जब तथाकथित विकसित राष्ट्रों के लोग शौच के बाद पानी भी नहीं मारते हैं। कितना अजीब है ये सोचना। गंगा की गाद गंदी नहीं होती है, हो सकता है वह अच्छी ना दिखे। पर गंदा तो वो हुआ ना जो आपको आपके स्वास्थ्य को आपके पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए? मुझे तो पश्चिम का बनाया प्लास्टिक गंदा लगता है। ना जाने इस प्लास्टिक ने कितने लोगों को कैंसर जैसी बीमारियां दी है। प्लास्टिक दिखता अच्छा है पर यह हमारे आपके स्वास्थ्य और इस पर्यावरण के सेहत के लिए बेहद गंदा है। यहाँ गोबर कूड़ा नहीं लोक की उपस्थिति है बनारस में गोबर का सड़क पर डला रहना आम है। ऐसा कतई नहीं कहा जा रहा है कि उसको सड़क पर ही होना चाहिए। पर गोबर गंदा नहीं है, यह सत्य है। सड़क पर डला होना तंत्र के ऊपर पड़ते बोझ का असर है। वरना जब फर्टिलाइजर बने भी नहीं थे तब से हम गोबर को इक्कठा कर खेतों में डालते थे। घरों को लीपते थे। समझना बस इतना है कि गंदा क्या होता है और किसके लिए। नीम की दातुन गंदी लगती है दिखने में और प्लास्टिक के ब्रश साफ तथा सुंदर भी, पर नीम गंदी होती नहीं है, आपके स्वास्थ्य के लिए तो कतई नहीं। कुल्हड़ वाली दूध जलेबी कुल्हड़ में दूध जलेबी, रबड़ी बनारस में खाइए उससे पवित्र और साफ कुछ नहीं होता है। प्लास्टिक / पॉलीथीन पैकिंग में जलेबी खाना या उसका साफ नजर आना, मन का भ्रम है। हमने अपना चश्मा बदल लिया है, इसलिए ऐसा दिखता है। जमीन पर गिर टूटे-फूटे मिट्टी के कुल्हड़ की फोटो देखा कर बोला जाता है कि बनारस गंदा है। मिट्टी कैसे गंदी हो सकती है? फिर तो आप हम सब तो मिट्टी से ही मिल कर बने है कितना साफ करेंगे खुद को केमिकल्स की साबुन से? सिर्फ केमिकल ही रह जाएगा, अगर मिट्टी से इतनी नफरत करेंगे तो। है बहुत कुछ खास यहाँ बनारस में बहुत कुछ छुपा है, उसे निकालने के लिए आपको बार-बार बनारस जाना पड़ेगा। जितनी बार जाएंगे, उतना नया जानेंगे। जितना ज्यादा जानेंगे बनारस उतना नया लगेगा। यह शहर बनारस आधुनिकता और पौराणिकता के सवारी एक साथ कर रहा है। आपको कभी ज्यादा आधुनिक होना का छलावा लगे तो बनारस जाके पुराने हो जाइए और अपनी सांस्कृतिक धरोहर पर गर्व कीजिए। जीवन बेहद खास है और यह समय आपको रुककर खुद के से मुलाकात का मौका नहीं देता बनारस आपसे अपने होने का परिचय कराता है। यह आपकी अपने रस में डुबो अपना बना लेता है-“ताकि बना रहे आपके जीवन में सदैव रस।इसलिए जाते रहिए बनारस” साभार (Source) – श्री विनय तिवारी मूलतः ललितपुर (उ प्र) के रहने वाले। शुरुआती शिक्षा सरस्वती शिशु मंदिर और गवर्नमेंट इंटर कॉलेज से 12 वीं तक फिर आईआईटी वाराणसी से सिविल इंजीनियरिंग 2012 की पढ़ाई पूरी की। फिर भारतीय इंजीनियरिंग सेवा में चयन किन्तु ज्वाइन नहीं किया । तत्पश्चात भारत की प्रतिष्ठित यूपीएससी में बतौर भारतीय पुलिस सेवा के चयन। इन दिनों बिहार की राजधानी पटना सेंट्रल के पुलिस अधीक्षक के रूप से कार्यरत।